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पीर-पुत्रों का पलायन / विमल राजस्थानी

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पीर-पुत्रों का पलायन रोकना,
टुक-टोकना कितना कठिन है
कोख में जिस आँख की आँसू न आये
जन्म की पीड़ा भला क्या जान पाये
डबडबायी आँख ही जिसकी नहीं हो
वेदना की तीव्रता कैसे निभाये
तोड़ कर तट नयन-कोरों का उफनते-
आँसुओं को रोकना कितना कठिन है
गीत कवियों ने बहुत गाये विरह के
नयन में बादल घने छाये विरह के
दाह से जलते हृदय की आँच झेली
दुर्ग साँसों के बहुत ढाये विरह के
पीर के इन अश्रु-छौनों को विरह की-
अग्नि में यों झोंकना कितना कठिन है