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पीरियड के बाद / रणजीत
Kavita Kosh से
मैं नहीं पढ़ पा रहा हूँ
सिर्फ़ तुमको देखता ही जा रहा हूँ
लगातार
इस प्रतीक्षा में कि कब यह पीरियड खतमाय
औ तुम्हारी (अर्थ के आग्रह से निर्भय!)
मूक-सी मुस्कान ही मिल जाय
ढो रहा हूँ मैं समय का भार
पर खड़कता गज़र ज्यों ही
बिना देखे
बिना बूझे
सामने से सरसराती
मेरे सोने के सपनों पर धूल उड़ाती
निकल जाती है तुम्हारी कार
हाय यह प्रतिदिन पराजय
पीरियड के बाद!