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पुर-कैफ़ सुहाना कोई मंज़र भी तो हो / रमेश तन्हा

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पुर-कैफ़ सुहाना कोई मंज़र भी तो हो
अनवार में डूबा कोई पैकर भी तो हो
मालूम पे लौट आयेगी हर शय खुद ही
माहौल का कुछ मिजाज़ बेहतर भी तो हो।