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पुरानी कहानी / निकअलाय ज़बअलोत्स्की / अनिल जनविजय

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इस दुनिया में जहाँ यह व्यक्तित्व हमारा
अस्पष्ट-सी, अबूझ सी भूमिका निभाता है,
हमको भी बुढापा घेर लेगा, मारेगा चमकारा
लोककथा में जैसे बूढ़ा राजा पटकी खाता है

जल रहा है, धैर्य से चमक रहा है वो
सुरक्षित जंगल में किसी जैसे जीवन हमारा
और एक-दूसरे से हम यहाँ मिलते हैं मौन जो
भाग्य में ही लिखा है वो झेलना पड़ेगा सारा

लेकिन जब चाँदी के रूपहले तारों से, मेरे यार ! 
चमकने लगेगी तुम्हारी ये कनपटी 
अपनी कविता की कॉपी मैं फाड़ दूँगा, मेरे प्यार
बचाऊँगा नहीं अपनी अन्तिम कविता भी अटपटी

आत्मा को झील की तरह छलछलाने दो
उन भूमिगत दरवाज़ों की दहलीज़ पर
और गहरे लाल पत्तों को झिलमिलाने दो 
नदी की अनछुई सतह की दबीज़<ref> गाढ़ापन, गफ़, घना, ठस</ref> पर 

1952
मूल रूसी से अनुवाद : अनिल जनविजय

लीजिए, अब यही कविता मूल रूसी भाषा में पढ़िए
         НИКОЛАЙ ЗАБОЛОЦКИЙ
                   Старая сказка

В этом мире, где наша особа
Выполняет неясную роль,
Мы с тобою состаримся оба,
Как состарился в сказке король.

Догорает, светясь терпеливо,
Наша жизнь в заповедном краю,
И встречаем мы здесь молчаливо
Неизбежную участь свою.

Но когда серебристые пряди
Над твоим засверкают виском,
Разорву пополам я тетради
И с последним расстанусь стихом.

Пусть душа, словно озеро, плещет
У порога подземных ворот
И багровые листья трепещут,
Не касаясь поверхности вод.
--
1952

शब्दार्थ
<references/>