भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
पुल / मुनेश्वर ‘शमन’
Kavita Kosh से
तोहर पास बनल रहला से
अच्छा लगे हे।
अच्छा लगे हे,
लगातार तोहर देखते रहना।
कुछ सुलगे लगे हे मनवाँ में।
जब तूँ नञ रहऽ है पास।
खामोशी उग आवे हे /
दरद-टीस करबट बदले लगे हे।
उदासी पसर जाहे।
जेठ के दोपहरिया जइसन।
कोय स्वारथ के उमेद /
नञ रहला पर भी।
बेमतलब नञ होवे हे।
तोहर नजदीकी।
सायत एहे खातिर /
तोहरा नञ रहला अपर/
हमरा भीतर
एगो गोंग बेकली छटपटबे लगे हे।
बेचैनी के आँच/
छुअइ ले चाहे हे तोहरा/
कदाचित कायम हो गेल हे।
एगो रिस्ता
जे पवित्तर हे/निरमल हे।
एगो पुल
जे अदिरिस हे
मजबूत आउ मनभावन हे।