एक गुलाब का फूल खिला है मेरे आँगन में
दो स्निग्ध कदली वृक्षों की संधि पर फैली हुई
गहरे काले रोमों से कंटकित एक टहनी पर ।
दो तराशे हुए सुडौल ओठों-सी
दो लम्बी चिकनी पंखुरियाँ
और उनके बीच
दो नन्हें-नन्हें कोमल गुलाबी पुष्प-दल ।
पास ही कीलित कम्पनों की एक कंदर्प-कोंपल
छूते ही जाग उठती है जो
भीगे हुए पुष्ट मूंग के दाने में
उभरे हुए एक ताज़ा अंकुर की तरह !
और आदिम रहस्यों से पूर्ण
एक अगाध पराग-कुंड !
बार-बार डूबता हूँ ख़ुशबूओं की इस अतलान्त वापी में
और हर बार पूर्ण तृप्त होकर भी
अतृप्त बना रहता हूँ ।