भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
पूँछ / निधि सक्सेना
Kavita Kosh से
उसने ब्याह किया
और समझा कि अब वो पूर्ण हुआ
कि अब उसके एक पूँछ ऊग आई है
जो उम्र भर उससे बँधी रहेगी
हर वक्त उसके पीछे चलेगी
उसकी सफलता पर
मगन मस्त हिलेगी
उसकी ख़ुशी में नाचेगी
उसकी उदासी में
सीधी लटक जायेगी
जब किसी अजनबी से मुख़ातिब होगा
सहम कर दुबक जायेगी
जब कभी उद्विग्न होगा
डर कर पैरों में घुस जायेगी
उसके हर भाव को अचूक अभिव्यक्त करेगी
हाँ वो एक हद तक अच्छी पूँछ साबित हुई
और वो विशुद्ध ????