भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

पूछते ”कामिनी-कर-झंकृत किस वीणा की झंकार प्रिये / प्रेम नारायण 'पंकिल'

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

पूछते ”कामिनी-कर-झंकृत किस वीणा की झंकार प्रिये।
किस वत्स हिता सद्यः प्रसूतिनी सुरभी की हुंकार प्रिये!।
किस दक्षिण-मारूत-धृत मलयज सौरभ की हो तुम प्रिये! पुलक।
हो किस कविता की रस-तंरग किस विरहिणि-उर की पीरकसक।
क्यों नित्य सुनाकर मधु-प्रशस्ति करती आरती उषा तेरी।
क्यों मुदित प्रकृति परिणय-प्रसून ले नित करती तेरी फेरी”।
किससे बतलाये कौन, यहाँ बावरिया बरसाने वाली ।
क्या प्राण निकलने पर आओगे जीवन-वन के वनमाली ॥114॥