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पूछा, “उस सुमन-मुकुल के हित क्यों रही नहीं अनुकूल प्रिये / प्रेम नारायण 'पंकिल'

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पूछा, “उस सुमन-मुकुल के हित क्यों रही नहीं अनुकूल प्रिये।
कल ही तो बन जानें वाली थी वह कलिका से फूल प्रिये।
थे अरुण-प्रात के चपल चरण हर्षित वसुधा पर विहर रहे।
थी प्रकृति मुग्ध, अनुकूल पवन था, पात-पात थे सिहर रहे।
सखि! शत-शत रंजित इन्द्र धनुष नर्तित तितली नें खींच दिया।
इस तरू से उस तरू कूँक-कूँक पिक नें वारुणी उलीच दिया।”
आ प्रकृति-भूप प्रियतम! विकला बावरिया बरसाने वाली ।
क्या प्राण निकलनें पर आओगे जीवन वन के वनमाली ॥119॥