भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
पूजा के गीत नहीं बदले / बलबीर सिंह 'रंग'
Kavita Kosh से
पूजा के गीत नहीं बदले, वरदान बदलकर क्या होगा?
तरकश में तीर न हों तीखे, सन्धान बदलकर क्या होगा?
समता के शांत तपोवन में अधिकारों का कोलाहल क्यों?
लड़ने के निर्णय ज्यों के त्यों, मैदान बदलकर क्या होगा?
मानवता के मठ में जाकर जो पशुता की पूजा करते,
प्रभुता के भूखे भक्तों का ईमान बदलकर क्या होगा?
पथ की दुविधाओं से डरकर जो सुविधाओं की ओर चले,
ऐसे पथभ्रष्ट पंथियों का अभियान बदलकर क्या होगा?
यदि फूलों में मधु-गंध न ही काँटो का चुभना बन्द न होगा,
चिड़ियों की चहक स्वच्छंद न हो उद्यान बदलकर क्या होगा?
पूजा के गीत नहीं बदले, वरदान बदल कर क्या होगा?