पूतना वध / कृष्णावतरण / सुरेन्द्र झा ‘सुमन’
सहसा देखल लोक, आबि पहुँचलि केओ जनि अपरूप
बनि-ठनि धनिजनि बीच एक क्यौ ललना अनुपम रूप
केश खोँसि जूहीक माल कृश कटि पुनि उन्नत वक्ष
कुटिल कटाक्ष एम्हर-ओम्हर देखइत के बाल समक्ष
मायारूपिनि कंस पठाओलि विष थन लेपि दुरंत
पहुँचलि अछि पूतना पापिनी करबे शिशुकेर अंत
हुलसि उठाय दुलारि बोल दय बालक हृदय लगाय
पिअबय लागलि दूध सूध-मुख बुझि शिशुकेँ हर्षाय
देखल सबहि बाल कलबल धय दुहु कर कसि कय वक्ष
पिबइछ थन, छनमे इह-उह कय रहलि धाय प्रत्यक्ष
लगले चिचिआयलि ओ घबड़ाइलि मायाविनि हंत!
कतबहु छोड़बय छुटय न शिशुमुख खसलि चेहाइत अंत
प्रकृत रूप पुनि पूतनाक अति विकृत भयानक भेल
दूध पिवैत प्राण पिबि लेलनि जखन कृष्ण शिशु खेल
दौड़ल धनि-जनि, बौड़ल जननी-जनक यशोदा-नन्द
कोर उठाय बालकेँ चूमथि चुमबथि उर आनन्द