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पूनों के चांन / प्रदीप प्रभात
Kavita Kosh से
सीटु, भोलू आरो हम्मेॅ
धान काटै लेली गेलां खेत
धान काटै रोॅ अभ्यास नै छेलै कहियोॅ
तीन्हू खालि देखै छेलियै
कचिया केॅ पकड़ी, कचिया रोॅ धार।
सोचै छेलियै केना कटतै खेतोॅ रोॅ धान
मजूर जे नै मिलै छै। धानोॅ रोॅ सीसोॅ झूकीं मुढ़ी गाथी देलेॅ छौ
धान काटै रोॅ कीड़ा तीन्हूँ आपन्हैं उढ़ैलियै
कचिया तेॅ लागै छेलै दुनिया रोॅ चांन
आरो खेत निहारी मनेंन्मन सोचै छेलियै
कहिया तांय काटलौ होतै ई दस कठिया खेत।
मन मसोसी केॅ अचताय-पचताय केॅ
शुरु कर लियै काटै रोॅ धान।
होड़ा बाची आरो धड़ फड़ी मेॅ
धानोॅ साथें कटी गेलै भोलू रोॅ हाथ।
लहुओं रोॅ धार देखी
होय गेलियै हवास।
आबेॅ कि काटबोॅ धान
दबाय-दारू करतें निनान
देखतें रहि गेलां एक एक
कचिया आरो दुतिया रोॅ चांन
नै देखेॅ सकलौं पूनों के चांन।