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पूरब दिसा ले नवा सुरुज के / लक्ष्मण मस्तुरिया
Kavita Kosh से
पूरब दिसा ले नवा सुरुज के, बगरत हे उजियारी
आसा अउ बिसवास जगाबो, भागे सबो अंधियारी
चलो जिनगी ल जगाबो, चलो बिगड़ी ल बनाबो
चलो भईया रे
चलो भईया खांध म खांध मिलाके रे,
जिनगी ल जगाबो, बिगड़ी ल बनाबो,
जांगर तोड़ कमा के
आपस के छोड़ भेदभाव ल, मया के बांध बंधाबो
आलस छोड़, मेहनत के डोंगा मा
जुर-मिल डुबकी लगाबो रे,
जिनगी ल जगाबो, बिगड़ी ल बनाबो,
जांगर तोड़ कमा के
गिर गिर उठना, आघु बढ़ना हमर ठठा हांसी
हमर ठठा हांसी
जोर जुलुम ले का घबराबो,
हम पक्का भारतवासी रे,
जिनगी ल जगाबो, बिगड़ी ल बनाबो,
जांगर तोड़ कमा के
हमर सन्सू में ताला भला कोन तोड़े कहाँ कब पाही
खांध म खांध मिलाके रहिबो,
हम मजदूर सिपाही रे,
जिनगी ल जगाबो, बिगड़ी ल बनाबो,
जांगर तोड़ कमा के