पूर्ण त्यागमय सर्वसमर्पण का / हनुमानप्रसाद पोद्दार
पूर्ण त्यागमय सर्वसमर्पणका जिनके अनन्य अभिलाष।
निज-सुख-वाछा-लेश-गन्धका त्याग, सहज मन परमोल्लास॥
प्रियतम-सुख ही एकमात्र है जिनके जीवनका आनन्द।
पूर्णानन्द ममत्व नित्य प्रियतम-पद-पंकज में स्वच्छन्द॥
प्रियतम मनसे जिनका मन है, प्रियतम प्राणोंसे हैं प्राण।
प्रियतम सेवारत नित श्रवणेन्द्रिय त्वग्-दृग-रसना-घ्राण॥
नित्य कृष्ण-सेवा-रसरूपा सर्व सद्गुणों की जो खान।
सर्वसुखों के दाता को भी देती अहंरहित सुख-दान॥
ऐसी प्रियतम-सुख-स्वरूपिणी, कृष्ण गतात्मा निरहंकार।
गोपीजन, है भरा हृदय शुचि प्रेम-सुधारस पारावार॥
जिनके पावन प्रेमामृत-रस-आस्वादनके हित भगवान।
शरद-निशाओंमें मधु मन कर निर्मित रचते रास विधान॥
पुन्यमयी उन गोपीजन के पदरज में सतकोटि प्रणाम।
जिसे चाहते उद्धव बनकर लता-गुल्म औषधि अभिराम॥