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पृथ्वी के वंशज / स्वप्निल श्रीवास्तव
Kavita Kosh से
पृथ्वी के वंशज हैं
गड़ेरिये और मछुआरे
उनके गीत हमारी आत्मा की
आवाज़ हैं
गड़ेरिये अपनी भेड़ों के साथ चरागाह की खोज में
धरती के सुदूर कोने में पहुँच जाते हैं
गर्मी हो या सर्दी बाधित नहीं होती उन की यात्रा
वे छतनार पेड़ो के नीचे बना लेते हैं ठिकाना
चाँद और सितारों की रोशनी के नीचे
गुज़ारते हैं रात
इसी तरह मछुआरे अपनी नाव के साथ
समुन्दर में विचरण करते है
और तूफ़ानों से लड़ते हैं
थल और जल के नागरिक हैं
गड़ेरिये और मछुआरे
वे हमारे
आदिम राग का आलाप हैं