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पेइचिंग : कुछ कविताएँ-2 / सुधीर सक्सेना
Kavita Kosh से
पुराना नाता है सूरज से
पेइचिंग का
करोड़ों वर्ष पहले एकबारगी
सूरज ने आँखें खोली थीं यहाँ
और आज भी सूरज यहीं खोलता है आँखें
आज भी सूरज पेइचिंग में खोलता है आँखें
और जल्दी नहीं मीचता
पेइचिंग पर निसार है सूरज
और सूरज के आकंठ प्यार में डूबा है पेइचिंग
पेइचिंग और सूरज के रिश्ते पर
लम्बे कूच की तरह लिखी जा सकती है लम्बी कविता
या लम्बी दीवार की तरह लिखा जा सकता है
लंबा क्लासिकी-- उपन्यास।