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पेट / मथुरा नाथ सिंह 'रानीपुरी'

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अजब किसिम के ई लफड़ा छै
जेकरा देखऽ पेटे-पेट
तब्बो कैन्हें कहै छै केकर्हौ
करतूतऽ के तोरे पेट।

चाल चलै छऽ डेगा-डेगी
खाय छौं सबटा तोरे पेट
एक दिन तोरऽ भंडा फुटत्हौं
झूठें सबटा खोलत्हौं पेट।

वोकरा भला कहाँ के देखै
जेकरा कोखें सटलऽ पेट
दुर-दुर, छी-छी करत्हौं लोगें
तोरे कैन्हें ई रंग पेट।

की-की करतै हय रंग भरल्हें
सब के आँखी हय रंग चढ़ल्हें
जे दिन हैजा-पेचिस होतौं
एकोटा नै रहतौं पेट।

हय रंग नै रे पेट बढ़ावऽ
ससरी जैत्हौं एक दिन पेट
डैनी आगू कोख छिपैनै
खैत्हौं तोरा तोरे पेट।

ई पेटें सवाल करै छै
मरै नै कैन्हें लाजें पेट
कहै छै ‘मथुरा’ ई रंग पेटें
भरै छै कैन्हें ई रंग पेट।