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पेड़ / सुभाष राय
Kavita Kosh से
जैसे पेड़ मर-मर कर जीवित हो उठता है
ज़मीन पर गिरे हुए अपने बीजों में
उसी तरह मैं भी बार-बार मरना चाहता हूँ
नई ज़मीन में नए सिरे से उगने के लिए
मैं जानता हूँ कि मृत्यु का सामना करके ही
जीवित रह सकता हूँ हमेशा