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पैरों से लिपटा रस्ता / रेखा

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चलते रही हूँ
तब से अब तक
चल-चलकर आई हूँ
पर कोई नहीं मानता
कि मैने
तय किये हैं रास्ते

आज भी बही है
म्रेरे पाँव
धूल का कण भी
नहीं लिपटा इनसे

रास्ते
उतने ही अनछुए
पदचिन्ह नहीं
कहीं कोई एक

पर
थक चुकी हूँ
चूकने लगा है हर कदम
सोचती हूँ
रास्ते ख़त्म हो गए हैं
मैने तय किये हैं रास्ते
नहीं पाँव में एक भी छाला
मख़मली जूते पहन
चलती रहे
सगमरमर पर

यात्रा ने
एक भी सलवट नहीं डाली
मेरे आँचल में
एक भी खरोंच नहीं

चलने के लिए हर बार
वसंत को वरा
ओर चली
शीशे के साँचे में बँद

थका देने वाली
वे रातें
जब मैं थका देने वाले सुख में
पड़ी रहती थी बेहोश
नहीं बाकी उनका कोई निशान

सुबह होते ही
कुलबुलाता हर रात का सुख
दफ़ना आती थी
दवाखाने में

आज
झूठे हो गये हैं
रास्ते
मुझे तोड़कर
मैं बीत गई हूँ
कदम
कदम
पर कोई नहीं कहता
कि मैंने तय किये हैं रास्ते
अब
सिर झुकाए
घसीट रही हूँ पीछे
खुद को
ताकि कील डालूँ
अपनी यात्रा का आरम्भ

इस बार
देखा चलकर
दलदल में
लिपट गया तमाम रास्ता
पाँवों से

तूफ़ानी रातें चुनी
चलने के लिए
निकल गई उनकी चुभन
तार-तार कर
उन बेहोश रातों को मैने
सहेजा
जिलाया
अपना लहू पिलाकर
और वे उजागर हो गई है
मेरे रोम-रोम में
आज मेरे जिस्म में
उग आई है
आँखें ही आँखें
और उनमें झिलमिला रहे हैं
तय किये रास्ते

मेरी यात्रा का
एक छोर थामे
तुम खड़े हो
सहयात्री

इधर मैं हूँ
रास्ता
नन्हें-नन्हें पाँवों में बँधकर
झूल रहा है
मेरी बाहों में
मैं थक नहीं पाती
चलती हूँ
थिरकती सी

मेरा रास्ता मुझसे आगे निकल गया है
आगे भी मैं हूँ
पीछे भी मैं
युग-युग तक
मैं हूँ
और है
मेरा रास्ता

1971