भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

पैहम मौज-ए-इमकानी में / मनचंदा बानी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

पैहम मौज-ए-इमकानी में
अगला पाँव नए पानी में

सफ़-ए-शफ़क़ से मेरे बिस्तर तक
सातों रंग फ़रावानी में

बदन विसाल-आहंग हवा सा
क़बा अजीब परेशानी में

क्या सालिम पहचान है उस की
वो के नहीं अपने सानी में

टोक के जाने क्या कहता वो
उस ने सुना सब बे-ध्यानी में

याद तेरी जैसे के सर-ए-शाम
धुँद उतर जाए पानी में

ख़ुद से कभी मिल लेता हूँ मैं
सन्नाटे में वीरानी में

आख़िर सोचा देख ही लीजिए
क्या करता है वो मन-मानी में

एक दिया आकाश में 'बानी'
एक चराग़ सा पेशानी में