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पोते के विवाह में मामाजी / गोविन्द माथुर

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कभी शहर की चारदीवारी में
रहता था मेरा सारा कुनबा
मेरा ननिहाल हो या मेरे पिता का ननिहाल
मेरी मौसियों, मेरी बुआओं और
मेरी बहिनों के ससुराल एक किलोमीटर
के वृत्त में ही सिमटे हुए थे
और तो और मेरे सारे मित्र भी
उस ही दायरे में रहते थे
घर से सौ कदम की दूरी पर ही था मेरा स्कूल

किसी भी वक्त घर से निकलने पर
सड़क, चौराहे या घर के बाहर
खड़ा मिल जाता है
कोई न कोई मित्र या रिश्तेदार
सबको सबकी खबर थी
लगता था सब रहते हैं एक ही घर में

अब किसी को किसी की खबर नहीं है
शहर की चारदीवारी लांघकर
बस गए हैं अलग-अलग दिशाओं में
बीस-पच्चीस किलोमीटर की दूरी पर
कभी ही किसी से होती है फोन पर बात
पहले बिन बात किए भी लगता था
जैसे रोज होता हो संवाद

बहुत कम रिश्तेदार रह गए हैं शहर में
शहर की हवेलियां बिक गई हैं या
खड़ी हैं जर्जर स्थिति में
अब रिश्तेदारों से मिलना होता है
मृत्यु या विवाह जैसे अवसरों पर
बच्चे नहीं पहचानते रिश्तेदारों को
बुजुर्ग पूछते हैं बच्चों से पिता का नाम
वर्षों में मिलते हैं पुराने दोस्त
पुराने दोस्तों के बदले पते
गुम हो जाते हैं बार-बार

एक दिन मैं गया
मामा जी के पोते के विवाह में
मामा जी का बेटा मेरा भाई ही नहीं
मेरा दोस्त भी था
बरसों हम रहे थे साथ
साइकिल पर काटते थे शहर का चक्कर

कई वर्षों के बाद देखा था
मैंने मामा जी को
पिच्यासी वर्ष की उम्र में
कम सुनने लगे थे
दिखना भी हो गया था बहुत कम
वे वर्तमान में कम
अतीत में ज्यादा जी रहे थे
उलझी आकृतियां रह गई थीं
उनकी आंखों के सामने
वे जी रहे थे एक अंधेरे में
जहां कुछ आवाजें चौंका देती थी उन्हें
बड़ी मुश्किल से अपनी पहचान
करा पाया था मैं
मेरा होना उनके लिए
एक अविश्वास की तरह होना था

स्टेज पर चल रहा था नाच गाना
स्त्रियों और बच्चे नाच रहे थे
फिल्मी और राजस्थानी लोक गीतों की धुन पर
अचानक धीमी गति से
स्टेज पर प्रकट हुए मामा जी
मंद-मंद थिरकने लगे उनके पैर
लय के साथ हवा में लहराने लगे हाथ
राजस्थानी लोक गीत
म्हारी घूमर है नखराली
की मधुर धुन पर नाच रहे थे मामा जी

पिच्चासी वर्ष के मामा जी को
पोते विवाह में
आह्लादित होकर नाचते हुए देखना
एक अद्भुत और अविस्मरणीय दृश्य था मेरे लिए
न जाने किन आत्मीय क्षणों की
स्मृति में मेरी आंखें नम हो गई
मामाजी को नाचते हुए देख कर


चापलूस

चापलूसी करना एक कला है
मूर्खों के वश की बात नहीं
चतुर और चालाक ही
कर सकते हैं चापलूसी

चापलूस होते हैं शिष्ट
और सभ्य-वे
अभद्रता से पेश नहीं आते

चापलूस जानते हैं
कब गधे को बाप कहना चाहिए
कब बाप को गधा
उन्हें मालूम गधे को
गधा कहना भी जरूरी है

अक्सर प्रशंसाकामी
घिरे रहते हैं चापलूसों से
और कहते हैं उन्हें चापलूसी पसन्द नहीं
चापलूस प्रभावित होते हैं उनके सिध्दांत से
कलात्मकता से प्रशंसा करते हैं उनके विचार की
प्रशंसाकामी गले से लगा लेते हैं चापलूस को

चापलूस बहुत कम दूरी रखते हैं
सच और झूठ में
एक झीनी से चादर रखते हैं
अंधेरे और उजाले के बीच

रोने की तरह हंसते हैं चापलूस
हंसने की तरह रोते हैं
उनकी एक आंख में होते हैं
खुशी के आंसू
दूसरी आंख में दुख के

हर युग में हुए हैं चापलूस
यदि चापलूस नहीं होते
बहुत से महान
महान नहीं होते

सफलता के लिए
जरूरी है चापलूसी
चापलूस किसी युग में
असफल नहीं होते।