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पोपलर वृक्ष की पत्ती / ग्योर्गोस सेफ़ेरिस
Kavita Kosh से
वह काँप रही है
बह रही हवा के ज़ोर से
बुरी तरह से काँप रही है वह
हवा से क्यों नहीं
काँप सकती वह नाव
वहाँ दूर समुद्र में
बहुत दूर
धूप में चमक रहा है एक द्वीप
और हाथ
पकड़ लेते हैं पतवार को मज़बूती से
बन्दरगाह तक पहुँचने के लिए
आख़िर तक खेना चाहते हैं नाव
थकी हुई आँखें बन्द होती जा रही हैं
और हवा सरसरा रही है समुद्र में
उतने ही भयानक ढंग से
काँप रही हूँ मैं
सरसरा रही हूँ हवा की तरह
यहाँ सफ़ेदे के पेड़ की छाँह में
वसन्त से शरद तक
नंगी खड़ी जंगल में
सरसरा रही हूँ मैं, मेरे भगवान !