भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

पौराणिक कथाओं से / मोनिका कुमार / ज़्बीग्न्येव हेर्बेर्त

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

पहले पहल वहाँ रात्रि और अन्धड़ का एक ईश्वर था,
बिन आँखों का काला आराध्यदेव
जिसके सामने वे ख़ून से सने नंगे होकर कूदते थे।
उसके बाद गणतन्त्र के दिनों में
बहुत सारे देवता हुए
जिनकी बीवियाँ थी, बच्चे थे
और जिनके पलंग चरचराते थे,
वे कोई नुक़सान किए बिना गाज गिराते थे।
अन्ततः केवल कुछ वहमी और विक्षिप्त लोगों ने
अपनी जेब में नमक से बनी मूर्तियाँ रखीं
जो वक्रोक्ति के ईश्वर का प्रतीक थी।
उस समय इससे अधिक प्रभावशाली कोई ईश्वर नहीं था।

कालान्तर में वहाँ वहशी दरिन्दे आए।
वे भी वक्रोक्ति के छोटे ईश्वर को बहुत मानते थे।
उन्होंने इसको अपनी एड़ी के नीचे रौंदा
और अपने पकवानों में डाल लिया।

अँग्रेज़ी से अनुवाद : मोनिका कुमार