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प्यार पलता नहीं है / प्रेमलता त्रिपाठी
Kavita Kosh से
हृदय में जहाँ प्यार पलता नहीं है।
वहीं स्नेह का दीप जलता नहीं है।
निराशा सभी मार्ग अवरुद्ध करती,
हिलोरें उठें मन प्रबलता नहीं है।
धरा शोभती ज्ञानियों से सदा जब,
हृदय भाव यह क्यों मचलता नहीं है।
रहे क्यों उदासी बढ़ी कामना क्यों,
चपल मन हमारा सँभलता नहीं है।
डगर है कठिन पर सफल हो सकें हम,
सही लक्ष्य मन में उछलता नहीं है।
मुखर हो रही मैं सरल भाव से अब,
सृजन में अभी वह कुशलता नहीं है।
मनन प्रेम सेपथ सुगम हेै बनाना,
सहज क्षम कभी हाथ मलता नहीं है।