भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
प्यार सेॅ जिन्दगी मुस्कुराबै सखी / कैलाश झा ‘किंकर’
Kavita Kosh से
प्यार सेॅ जिन्दगी मुस्कुराबै सखी ।
प्रेम तेॅ हर कली केॅ खिलाबै सखी ।।
ई सही छै कि दुश्मन बहुत इश्क केॅ,
लोग सब्भे इहेॅ तेॅ बताबै सखी ।
लाख काँटोॅ बिछल राह मेॅ छै मगर,
यें जुवां नै मुहब्बत भुलाबै सखी ।
एक उल्फत बिना व्यर्थ के जिन्दगी,
माशुका बिन न कुच्छू सुहाबै सखी ।
नेह जीवन सेॅ जुड़लोॅ जरूरी ग़ज़ल,
गीत, चकबा-चकोरी सुनाबै सखी ।