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प्यारे! ऐसी का तुम ठानी / स्वामी सनातनदेव

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राग राजेश्वरी, तीन ताल 9.8.1974

प्यारे! ऐसी का तुम ठानी।
ऐसी कहा चूक भई मोसों, मेरी एक न मानी॥
टेरत-टेरत वयस सिरानी, आय गयो नकबानी।
तदपि न सुनी एक तुम मेरी, करी सदा मन-मानी॥1॥
तुम बिनु मेरो और कहो को, जासों कहों कहानी।
जानहुँ तुम मेरे जी की सब, फिर क्यों करहु गुमानी॥2॥
तुम बिनु तुमसों चहों न मैं कछु, तुमहि देत का हानी।
फिर काहे भटकावहु मोकों सदा-सदा के दानी॥3॥
तुव पद-प्रीति नित्य-निधि मेरी, चहों न और गुमानी।
सब कछु लेहु, देहु मेरी निधि, कीजिय प्रीति-प्रमानी॥4॥