भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

प्यारे हँसो रहो ही हँसते / हनुमानप्रसाद पोद्दार

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

प्यारे! हँसो, रहो ही हँसते तुमको खूब हँसायें हम।
प्यारे! सदा प्रसन्न रहो तुमको अति सुखी बनायें हम॥
तन-मन-बुद्धि तुहारे सारे इनको नहीं रुलायें हम।
वस्तु तुम्हारी को सुख देते संतत शुचि सुख पायें हम॥