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प्रकाश की दुनिया / किरण अग्रवाल
Kavita Kosh से
मेरे सामने है प्रकाश की दुनिया
वहाँ अंधकार नहीं है
वहाँ दूख नहीं है
वहाँ आनन्द है और बस आनन्द है
मेरे सामने खुला है द्वार प्रकाश की दुनिया का
मैं जाती हूँ वहाँ
लेकिन लौट-लौट कर वापिस आती हूँ
अपनी इसी दुनिया में
मैं अकेले नहीं रहना चाहती वहाँ
मैं अपने परिवार के साथ वहाँ जाना चाहती हूँ
और सारी दुनिया है मेरा परिवार
मैं अपनी दुनिया के साथ
प्रविष्ट होना चाहती हूँ प्रकाश की दुनिया में