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प्रकाश तू ही फैलाती है / कमलेश द्विवेदी
Kavita Kosh से
मैं माटी का दिया और तू मेरी बाती है।
मेरे जीवन में प्रकाश तू ही फैलाती है।
मैं हूँ तुझमें तू है मुझमें
ऐसा बंधन है।
तेरे कारण ही मेरा यह
जीवन पावन है।
मैं चन्दन हूँ लेकिन मुझको तू महकाती है।
मेरे जीवन में प्रकाश तू ही फैलाती है।
अपने बंधन बँधे यहाँ से
नहीं, वहाँ से हैं।
तन है मेरा लेकिन इसमें
तेरी साँसें हैं।
मेरे गीत रागिनी बनकर तू ही गाती है।
मेरे जीवन में प्रकाश तू ही फैलाती है।
जनम-जनम से तेरी-मेरी
रिश्तेदारी है।
मैं जानूँ तू जाने इसको
दुनिया सारी है।
पर इस रिश्ते को तू मुझसे अधिक निभाती है।
मेरे जीवन में प्रकाश तू ही फैलाती है।