भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
प्रकृति / अनुज लुगुन
Kavita Kosh से
इच्छाएँ कभी नहीं मरतीं
वे तैरती रहती हैं हवाओं में
सांस लेते नवजात बच्चे के अन्दर
वे ऐसे ही घुस जाती हैं
और बच्चा रोने लगता है
बच्चे का दुख जनम लेते ही
शुरू हो जाता है
और उम्र के एक पड़ाव के बाद
जब वह मरता है
तो इच्छाएँ जीवित रहती हैं
हम कह सकते हैं —
हमारा इतिहास ऐसे ही बनता है
एक शासक मर जाता है
और शासन करने की इच्छा
बची रह जाती है ।
एक आदमी मर जाता है
और उसके लड़ने की ताक़त
बची रह जाती है ।