भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
प्रकृति / ॠतुप्रिया
Kavita Kosh से
भाँत-भाँत री सौरम
अर
भाँत-भाँत रा रंग
थूं कठै स्यूं ल्यावै
म्हारा रंग-बिरंगा फूल
प्रकृति
म्हूं तन्नै
बार-बार करूं नीवण
थूं इणां में
कठै स्यूं भरै
इस्सौ फूटरौ जीवण।