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प्रकृति में तुम / पुष्पिता
Kavita Kosh से
सूर्य की चमक में
तुम्हारा ताप है
हवाओं में
तुम्हारी साँस है
पाँखुरी की कोमलता में
तुम्हारा स्पर्श
सुगंध में
तुम्हारी पहचान।
जब जीना होता है तुम्हें
प्रकृति में खड़ी हो जाती हूँ
और आँखें
महसूस करती हैं
अपने भीतर तुम्हें।
मैं अपनी परछाईं में
देखती हूँ तुम्हें
परछाईं के काग़ज़ पर
लिखती हूँ गहरी परछाईं के
प्रणयजीवी शब्द।
तुम मेरी आँखों के भीतर
जो प्यार की पृथ्वी रचते हो
उसे मैं शब्द की प्रकृति में
घटित करती हूँ।