भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
प्रणय मोक्ष / पुष्पिता
Kavita Kosh से
प्रेम
रंग नहीं,
पानी नहीं,
उजाला नहीं,
अँधेरा नहीं,
शीतलता नहीं,
सुगंध है
सिर्फ अनुभूति भर के लिए।
प्रेम
प्रकृति नहीं,
सृष्टि नहीं,
समुद्र नहीं,
सूर्य नहीं,
चंद्र नहीं,
पवन नहीं,
सौंदर्य है
सिर्फ सुख के लिए।
प्रेम
साँस नहीं,
धड़कन नहीं,
चेतना नहीं,
स्पर्श नहीं,
स्पंदन नहीं,
अभिव्यक्ति नहीं,
देह नहीं,
सिर्फ आत्मा है
परम तृप्ति और मोक्ष के लिए।