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प्रतिदान / मुनेश्वर ‘शमन’
Kavita Kosh से
पसरल हे दरद-टीस,
जियरा के घेर के।
जिनगी कत्ते उदास हे।
चुभन हइ दें उनकरे,
देली हल जिनका दान
ढ़ेरमनी निरमल नेह
बिलकुल अप्पन मान।
खूँखार जानवर भी
दुलारला-पुचकारला पर
सर झुकाके/ दम हिला के
बन जाहे दोस्त।
मुदा आदमी जो अजीब हे
पाके पुचकार-प्यार
बेझिझक ऊ दे जाहे
धोखा आउ तिरस्कार
दुखाबइत हरियर घाव पर
ठेस-चोट बार-बार।