प्रतिपक्ष / हेमन्त कुकरेती
राजनीति में संस्कृति और उसमें धर्म जैसा कुछ
देखने लगे सम्पादकीय
आदमी में शैतान और उसमें निश्चित तौर पर
काँइयापन था पहले से ही
इसे ले गये कहानीकार
पाँचसितारा चेहरों की उँगलियों से निकली कला-रचनाओं में
गरीबी और दुख और अपमान दिखाते-दिखाते
पत्रकार डूब गये बोतल में, उबर नहीं सके नशे के बावजूद
अफ़सर पहले से ही करते थे काव्य में मनोरंजन की जुगलबन्दी
प्यार को कै़द किया उन्होंने और बना दिया पत्थर का
कवि विश्वविद्यालयों और अख़बारों से बाहर हो गये
करने लगे राजनीति के खुले बाज़ार में फ्रीलांसिंग
इंजीनियरों को इन्सानों के ऊपर पुल बनाना था कि
नेताओं को करना था उसका उद्घाटन
उनके जुकाम का स्वास्थ्य-बुलेटिन जारी करने की दुकान थी
डॉक्टरों के पास
हमेशा की तरह बुराइयों के बारे में
कोमल विचार रखने वाले बौद्धिक एकमत थे कि कहाँ नहीं है राजनीति
सिर्फ़ उस आदमी ने इसका विरोध किया
काम के बदले अनाज देने के नाम पर जिसके कपड़े उतार दिये गये
रहता वह पहले से फुटपाथ पर था
हफ़्ता वसूलने के बाद भी उसे खदेड़ दिया गया वहाँ से
यह कैसा जादुई सच कि उसके मरने पर पता चला
वह सभी राष्ट्रीय दलों का स्थानीय सदस्य था...