भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

प्रतिमा / आता लबों पे नाम तेरा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

रचनाकार: ??                 

आता लबों पे नाम तेरा बार-बार क्यूँ?
है रोज़ सुबह शाम तेरा इंतज़ार क्यूँ।।

नाजुक तेरी निगाह, बड़े नाज की पली।
ऐसी भली निगाह से दिल का शिकार क्यूँ।।

मेरे क़रीब आ तू मेरे और भी क़रीब।
दो दिल न मिल सके तो हुईं आँखें चार क्यूँ।।