प्रतिरोध / सुजाता
मैंने सर झुकाया और भीगने दिया बालों को
उंगलियों के बीच से ठंडे तेज़ पानी को 
खुशी से इजाज़त दी भागने की
गोल पत्थर को उठाकर रख दिया वापस
शरमाकर सिकुड़ गए जीव से मांगी क्षमा
जीभ दबाकर दांत में हंसी शरारत पर
फिर पांव रखे नदी में 
और एक ठंडी सिहरन के साथ 
किसी जादू से मानो 
हो गयी 
सुनहरी मछली 
मेरा होना है अब इसी जल में 
मैने पा लिया है इसे 
जैसे पा लेता है कोई बीज 
नाखून भर मिट्टी अँखुआने के लिए 
जैसे पा लेती है गिरती चट्टान एक ठौर नदी के रास्ते में
और भरने लगता है संगीत ऊबे पानी में 
बनाती हूँ रास्ता 
मांगती हूँ श्वास 
देखना 
आता होगा अभी कोई जाल 
मेरी टोह में 
छूटती है चींख जैसे टूटता है कांच 
चूरा चूरा 
स्तब्ध जल विकल मन
उहापोह में
 मैं जल 'में' हूँ? 
 या मैं विरुद्ध जल के? 
किसी खाड़ी में खोने से पहले
नदी को लौटानी होंगी 
कम से कम मेरी स्मृतियाँ 
अपनी पहचान में
स्वीकारना होगा उसे
मेरा होना ठीक ऐसे
जैसे उसकी मोहक कलकल में
चट्टानों का होना
भरता है मानी
 
निरर्थक है पूछना-
चट्टान धारा में है या खिलाफ धारा के!
	
	