भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
प्रतीक्षा / राग तेलंग
Kavita Kosh से
प्रतीक्षा के दौरान
होती है परीक्षा
जो धैर्य लेता है
विविध विषयों के बारे में
हमारे सोचने के समय
तयशुदा जगह की तुलना में
ज़्यादा समय तो
ऐसे स्थानों से होते हुए गुज़रता है
जहाँ हमें रुकना ही नहीं होता
वक़्त की चौड़ी बेंच पर
एक छोटी-सी जगह मिलने की ख़्वाहिश में
गुज़ार देते हैं कई घड़ियां
प्रतीक्षा के बाद
प्रतीक्षा को ही आना होता है
यह सिलसिला
जब तक बना रहता है
उतना ज़्यादा फैलता है आसमान
उतनी ही लंबी होती हैं बाहें
उतनी ही दूर
आगे खिसकती हैं
मिलने की संभावनाएँ ।