भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

प्रत्युपकार / सुरेन्द्र झा ‘सुमन’

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कलकल छलछल नदी बहै छल चुट्टी एक पियासलि
आयलि पीबय पानि लहरिमे पड़ि सहसा भसियाइलि
परबा एक तीर-तरुपर बैसल छल सदय सुजान
पात खसाओल, लटकि जाहिपर कहुना पौलक त्रान
किछु दिन बीतल, तरुपर रीतल परबा छल निश्चिन्त
आबि व्याध क्यौ तीर उठाकय बेधय चाहल हन्त!
देखि दृश्य ई अति कृतज्ञ चुट्टी चट कटकल जाय
पटकल पैर व्याध, बाधित भय छुटल तीर कतिआय
ताबत उड़ि परबा तरुवरसँ जीवन अपन बचौल
उपकारक फल पाबि प्रेमसँ परम प्रभुक यश गौल