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प्रदर्शन / मन्त्रेश्वर झा
Kavita Kosh से
प्रगति मैदान मे लागल अछि प्रदर्शनीक ढेर
प्रगति की भऽ जाइत छैक अनेर
प्रदर्शनी फेर, प्रदर्शनी फेर।
आत्मदर्शन कि ब्रह्म दर्शन कि
अर्जुनक विराट दर्शन
सभटा थिक किताबी बात
हिन्दुत्वक ढोंग, कि उत्पात
आब दर्शन के मारू गोली
बनू प्रदर्शन, करू प्रदर्शन
कर्मकाण्ड भऽ गेल प्रदर्शनक काण्ड
प्रदर्शन के सजबैत जाउ
अपन-अपन रंगोली, प्रशंसाक बोली
व्यर्थ अछि रामलीला, झामलीला
सुलभ अछि बनायब आ बनब रंगीला
दर्शन सँ होइत हेतैक गति आ कि दुर्गति
प्रदर्शन सँ होइत छैक प्रगति, केवल प्रगति
प्रगतिक मैदान मे केवल प्रदर्शन,
देहक प्रदर्शन, दया, दान, टाकाक, नेहक प्रदर्शन
दर्शनक प्रदर्शन, प्रदर्शनक प्रदर्शन।