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प्रभात / बालमुकुंद गुप्त
Kavita Kosh से
चटक रहीं बागों में कलियाँ,
पंछी करते हैं रंगरलियाँ।
ग्वाल चले सब गायें लेकर,
बालक पढ़ते हैं मन देकर।
महक रही है खूब चमेली,
भौंरे आए जान अकेली।
सूरज ले किरनों की माला,
निकला सब जग किया उजाला।
ठंडी हवा लगे अति प्यारी,
क्या शोभा देती है क्यारी।
पत्ते यों ओस से जड़े हैं,
जैसे मोती बिखर पड़े हैं।
उठो बालको, हुआ सवेरा,
दूर करो आलस का डेरा।
मुँह धोओ, थोड़ा कुछ खाओ,
फिर पढ़ने में ध्यान लगाओ!
-साभार: गुप्त निबंधावली, स्फुट कविता, बाल विनोद-665