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प्रभुकी महत्ता और दयालुता / तुलसीदास/ पृष्ठ 2

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प्रभुकी महत्ता और दयालुता-1

 ( छंद 126, 127)

(126)

कालहूके काल, महाभूतन के महाभूत,
कर्महूके करम, निदान के निदान हौ।

निगम को अगम , सुगम तुलसीहू-सेको,
एते मान सीलसिंधु ,करूनानिधान हौं।

महिमा अपार, काहू बोलको न वारापार,
 बड़ी साहबीमें नाथ! बड़े सावधान हौं।

(127)

आरतपाल कृपाल जो रामु जेहीं सुमिरे तेहिको तहँ ठाढ़े।
 नाम-प्रताप-महामहिमा अँकरे किये खोटेउ छोटेउ बाढ़े।।

सेवक एकतें एक अनेक भए तुलसी तिहुँ ताप न डाढ़े।
प्रेम बदौं प्रहलादहिको, जिन पाहनतें परमेस्वरू काढ़े।।