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प्रमत्तता / बरीस पास्तेरनाक
Kavita Kosh से
सिरपेंचे की लताओं से आवेष्ठित
सरपत के नीचे
हमने आश्रय खोजा था झंझावात वाले मौसम में ।
एकमात्र परिधान ने ढँक रखा था गूँथ कर हम दोनों को
और मेरी बाँहों से आवृत्त तुम थी आबद्ध ।
लगता है, मुझे धोखा हुआ था ।
घनी झाड़ी के वृक्ष, सिरपेंचे की वल्लरियों से नहीं
बल्कि आवेष्ठित थे मदिर-लताओं से ।
तब हमने प्रशस्त भाव से पसार दिए
तन से त्याग कर अपने एकमात्र परिधान
जो बने भूमि पर चादर और उपधान भी ।
अँग्रेज़ी भाषा से अनुवाद : अनुरंजन प्रसाद सिंह