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प्रसिद्धि / हरीश प्रधान
Kavita Kosh से
मैंने अपनी
सभी आदर्शों युक्त सहजता,
और चरित्र को,
चौराहे की सलीब पर टांग
निर्लज्जता का
आकर्षक गॉगल पहिन लिया है।
और अब,
प्रतीक्षित हूँ, सलीब पर टंगी लाश को सड़ने
के लिये,
उसकी सड़नऔर बदबू
और मेरी प्रसिद्धि
दोनों
सब सहगामिनी हैं।