भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
प्रस्थान हो रहा है / बलबीर सिंह 'रंग'
Kavita Kosh से
प्रस्थान हो रहा है, पथ का पता नहीं है।
सागर से माँग पानी
देते न मेघ दानी,
लहरें भी लिख न पातीं
तूफान की कहानी।
नैराश्य की निशा में
आलोक की दिशा में
अभियान हो रहा है, गति का पता नहीं है।
प्रस्थान हो रहा है, पथ का पता नहीं है।
बिजली ने नहीं सीखा
मधुवन से दूर गिरना,
चन्दा को नहीं आया
तारों से बात करना।
दुख-दैन्य के दमन में
सुख-शान्ति के चयन में
व्यवधान हो रहा है, क्षति का पता नहीं है।
प्रस्थान हो रहा है, पथ का पता नहीं है।
अपदस्थ हो रही हैं
तपनिष्ठ साधनायें,
असमय बदल रही हैं
जीवन की मान्यतायें।
विध्वंस की डगर में
निर्माण के नगर में
क्या क्या न हो रहा है, कृति का पता नहीं है।
प्रस्थान हो रहा है, पथ का पता नहीं है।