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प्राण में पूर्णिमा / सुरेश कुमार शुक्ल 'संदेश'

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हैं शिथिल आज संकल्प सारे हुए ।
शुभ्र विश्वास के मन्द तारे हुए ।

याद में आपकी अश्रु इतने गिरे,
दृग सलोने हुए, सिन्धु खारे हुए ।

आँख में प्राण बनकर समा तुम गये,
दूर-दृग से जगत के नजारे हुए ।

कुछ नहीं और रूचता मुझे अब यहाँ,
प्राण जबसे सहारे तुम्हारे हुए ।

भटकनों की डगर है किधर ले चली
क्यों न तुम पथ-प्रदर्शन हमारे हुए ?

जिन्दगी मौत है मौत है जिन्दगी-
जिन्दगी मौत के हम इशारे हुए ।

मावसों को रहे ढूँढ़ते उम्रभर,
प्राण में पूर्णिमा पूर्ण धारे हुए ।