प्राणमती का पता / प्रेम प्रगास / धरनीदास
चौपाई:-
कहन लागु सच पंखि विचारी। जिन देखा जंह सुन्दर नारी।।
कोई कह कामिनि पूरब देश
कोई कह उत्तर उत्तम नारी। पुनि मैना एक कथा वसाही।।
मो सन सुनहु अपूरब बाता। एक दिवस अस कियहु विधाता।।
दक्षिण दिशा गयउं चरनाई। एक साहु सुत मोहि बझाई।।
सो मोंह लैगो सागर-पारा। वहि दिशि विधि मोंहि दिहु बिस्तारा।।
तंहवा एक कुअरि हम देखा। सुनहु ताहिकर कहहुं विशेषा।।
विश्राम:-
पारस में श्रीपुर नगर, ज्ञान देव तहं भूप।
प्राणमती ताकी सुता, रमा तुलै ना रूप।।17।।
चौपाई:-
वहि परिवहिं पांखिन झझकोरा। बात कहौ वसुधाकी औरा।
अगम पंथ तंह कोधौं जाई। तापर सागर की तरनाई।।
परमारथ पूछे मन लाई। कह प्रीतम तुम मोहि दोहाई।।
कैसन देश कैसन वह भूपा। कैसन कुंआरि कौ रूप सरूपा।।
केहि देख्यो सो कहिये मोंही। साखि शपथ दे पूंछो तोही।।
विश्राम:-
जस देखो तुम पक्षिवर, तस मोहि कहो बुझाय।
निश्चय वचन तम्हा मोहि, अब जनि घरहु दुराय।।18।।