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प्रात की रश्मियाँ झिलमिलाने लगीं / रंजना वर्मा

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प्रात की रश्मियाँ झिलमिलाने लगीं।
यामिनी रवि से आँखें चुराने लगी॥

शशि से पूछे उषा
तुम कहाँ चल दिये?
व्योम के नैन से
अश्रु से ढल दिये।

उसकी चूनर सितारे छिपाने लगी।
यामिनी रवि से आँखें चुराने लगी॥

लो अरुण आ गया
सूर्य का सारथी,
जिस पर मुग्धा प्रकृति
है हृदय वारती।

राग के रंग रँग मुस्कुराने लगी।
यामिनी रवि से आँखें चुराने लगी॥

स्वर्णिमाभा मिली
दिव्य के प्यार में,
है क्या सौगात भी
ऐसी संसार में?

हो मगन यह पवन गुनगुनाने लगी।
यामिनी रवि से आँखें चुराने लगी॥