प्रिय! यदि तुम पास होते! / कविता भट्ट
अगणित आशा-पत्रों से लदा,
प्रफुल्ल कल्पतरु जीवन सदा,
पतझड़ भी सुवासित मधुमास होते,
प्रिय! यदि तुम पास होते!
झर-झर प्रेम बरखा बरसती,
बूँद-बूँद न कोंपलें तरसती,
झूलती असंख्य कलियाँ, कामना प्रवास होते!
प्रिय! यदि तुम पास होते!
पुष्पगुच्छों के अधर पर,
कुछ तितलियाँ-चन्द भ्रमर,
रंग-स्वर लहरियों के सहवास होते
प्रिय! यदि तुम पास होते!
ये रातें-झिंगुरों की गान हैं जो,
शैलनद ध्वनियों की प्रस्थान हैं जो,
उनमें- आलिंगनरत धरती-आकाश होते,
प्रिय! यदि तुम पास होते!
जहाँ चिंतन है, वहाँ आनन्द होता!
हृद्य भाव-सिन्धु स्वच्छन्द होता!
छल की पीड़ा मिटाते, अटूट विश्वास होते।
प्रिय! यदि तुम पास होते!
पल-दिवस संघर्ष न होते,
आह्वलादों के प्रसार होते।
पूर्णता की श्वासें, कामनाओं के प्रश्वास होते।
प्रिय! यदि तुम पास होते!
धड़कन-स्वर कर्कश न होते,
चूर-चूर सब अवसाद होते।
वृक्ष-झुरमुट, मधुर-तानें, राधा-कृष्ण से रास होते
प्रिय! यदि तुम पास होते!
अविच्छिन्न आयाम निरन्तर साकार होते,
रेखाएँ-सीमाएँ और दिशान्तर लाचार होते।
अन्तहीन कल्पनाओं को; विराम के आभास होते
प्रिय! यदि तुम पास होते!