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प्रिय तुम तो सावन के प्रभात (दशम सर्ग) / गुलाब खंडेलवाल

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प्रिय तुम तो सावन के प्रभात
मैं बदली-सी मिलने आयी, साँसों में लेकर मलय वात
 
जीवन हरीतिमा पिक-कुहरित
तुम उमड़ रहे बन स्नेह-सरित
मैं तरु-छाया-सी हरित-भरित
लहरों को करती आत्मसात्
 
अधिकारों के हित होड़ मची
मैं खड़ी तीर पर चिबुक मोड़
संतप्त ह्रदय का शान्ति-क्रोड़
मेरा स्मित-दीपित दृष्टि-पात्
 
तुम कर्मशील, मैं भावमयी
रचते मिल कर नित सृष्टि नयी
बन बुद्धि चेतना-सूत्र गयी
गूँथती विश्व शत मनोजात

प्रिय तुम तो सावन के प्रभात
मैं बदली-सी मिलने आयी, साँसों में लेकर मलय वात